हिंदि कविता । कोन तुम्हे चाहाता हैं । चाहत दिल कि। देविंदर गुज्जर । कितना हमे कोई चाहे ?

कविता :  Kon tumhe chahata ye mansha se pata lag jaata hain

 कोन तुम्हे चाहाताये मन कि मंशा से पता लग जाता हैं 

 कोन तुम्हे चाहाता, ये कुछ दिनो मैं पता लग जाता है

  कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
कोन तुम्हे मिलने, बिंना मतलब घर आता हैं

...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं

 


कोन तुम्हे चाहाता, वो तो अपनी जरुरत पुरी करने आता हैं
कोन तुम्हे उसकी जरुरत के समय ही, सामने नजर आता हैं
   ...कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
 
सब मतलब के साथी, कोई ना साथ अपने जाता हैं
सब जिते जी का बसेरा, साथ ना कुछ जाता हैं
   ...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
 
सब जनते हुए भी, ना कोई इंसे पिछा छुडा.ता हैं
क्योकि वो भी अपनी मंशा पुरी, करना चाहाता हैं.
  ... कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
 
बेटा बापु के वंश कि मंशा के लिए दुनिया मे आता हैं
बेटी का जन्म तो, बस बेटे कि चाह मे हो जाता हैं
   ...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
 
घर मे जो आता जाता बेटे की तमन्नाओ को पुरा कर जाता हैं पर
घर मे जो आता जाता बेटी की तमन्नाओ को छोटा कर जाता हैं
   ....कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं

भाई बहन सब बचपन मे प्यारे, जवानी आते 2 सब बदल जाता हैं
भाई बहन के प्यार, अपना मतलब आते ही जहर मे बदल जाता है
   ...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
 
जो भाई, भाई के लिए, अपनी जान छिड.कता आता हैं
वो ही भाई, भाई से ,अपनी जान छुडा.ता नजर आता हैं
    ...कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
 
छल की दुनिया मे, जो इस खेल को समझ नही पाता है
छ्ला जाने के बाद भी दुनिया मे किसी को नही बता पाता हैं.
   ...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता है
 
जब तक ये खेल उसकी समझ मे आ पाता हैं
जब तक वो इस खेल मे काफी पिछे रहा जाता हैं
   .कोन तुम्हे 
बिना मतलब, फोन करके आता हैं
 

एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ। हिंदि कविता by देविंदेर गुज्जर। सैनिक जीवन । सैनिक जीवन ओर ये दुनियां


 FOJI HOON MAIN MERI GAATHA SUNAAATA HOON


 

एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

कोई कवि नही मैं अपने मन कि व्यथा सुनाता हूँ
 
अभी तक जवानी की दहलिज पर नही पहुच पाया हूँ
पर मे देश कि दहलिज पर जवान बन पहुच जाता हूँ
पवित्र ग्रंथ कि सपथ ले जब मैं सैनिक जीवन अपनाता हूँ
जो मुझे आदेश मिलेगा उसे पुरा करने मैं कस्म खाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
पुरा जीवन मैं उस कस्म पुरा करने मे लगे रह जाता हूँ
पुरा जीवन मैं घर ओर ड्युटी मे तालमेल नही बिठा पाता हूँ
कोई कैसे भी जिए जीवन पर मैं अपना सैनिक जीवन जीए जाता हूँ
कोई जरुरत पडे. तो मैं सुहाग रात छोड.पहले सैनिक धर्म निभाता हूँ
  एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

अपने ग्रह्थ जीवन मे सायद ही मैं सकुन पाता हूँ
पर देश सेवा के बिच मे  मैं इसे कभी नही लाता हूँ
मेरी जीवन गाथा मे मैं प्रितम प्यारी का बहुत रिणी हो जाता हूँ
इसके त्याग़, संतोश भाव के कारण ही मैं अपनी ड्युटी करता जात हूँ
...एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

जब कई -2 महिने बाद घर मैं जब आता हूँ
अपने बच्चो के लिये ही मैं अजनबी बन जाता हूँ
एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

कई बार जब मैं मोत को हरा कर आता हूँ
ओर कई बार जब मैं मोत को हरा नही पाता हूँ
ये महोल हर रोज जब मैं मेरे पास पाता हूँ
अपने ही दिल से पुछो कैसे ----
-मैं अपने अर्मानो से पहले देश को रख पाता हूँ
...एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
मैं देश के गोरव के लिये अपने आप को मिटा जाता हूँ
को मेरे काम पर सवाल उठाए, सबुत मांगे  ये मैं नही देख पाता हूँ
पर देख ये दोगलापन मेरे साथी अंदर ही अंदर जल-2 जाते हैं
पर फिर भी मैं अपने देश के लिये सब सहन करता जाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
जब कभी गलती से मैं छुट्टी पर कोई गलती मे आ जाता हूँ
अपने चारो ओर बस मैं देश के कानून का फन्दा पाता हूँ
जब मुझे सहिद होने पर अपने घर पहुचाया जाता हूँ
 जनता ओर कानून का झुठा सैनिक प्रेम देख रो नही पाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

जनता ओर सरकार को बस इतना कहना मैं ये चाहाता हूँ
जिंदा रहने पर मैं कुछ इज्जत अपनी देखना चाहाता हूँ
..एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।