फोजी के मन कि क्श्क, A army men hearts filling

                

       FOJI KE MAAN KI KSHAK ?



  हम झंडे मे लिपट कर आते दिखाते सब क्याझुठा    प्यार हैं

  जैसे ही आते साथ रहन करने लग जाते हम पर वार हैं

   हमारे तन मन ओर धन से धोखा  ये कर जाते हर बार हैं
   हम फिर भी इन्से दिल से जताते  जाते प्यार हैं
   छुट्टि जाते तो भी रास्ते मे लुतने को होते ये  तेयार हैं
   ये हमे ट्रेन मे शिट कि क्या कहे जय हिंद  भी नहि कह पाते हैं
   
 जब जवानी गुजार आते  मोत के दर्बार हैं
   हम सिधे  रह जाते  छल कि दुनिया करती शर्मशार हैं
  पेंनसन से नही  चल पाता ये घर परिवार हैं
  फिर हम जा नोकरी के लिऐ लगाते कतार है
 
 आर्कछ्ण के नाम पे  देती ये धोखा सरकार  है
 देश सेवा बाता कर  हनन कर दिये सारे अधिकार हैं
अपनी नोकरी मे हम  समाज से हि कट जाते हैं
जो आर्कछ्ण दे रखा वो भी नही ले पाते हैं
 
 सबसे ज्यादा हमे धोखा देति आई  हमारी सरकार  हैं
 जो जो भी नियम बनाति, साथ ना लेति हमारे जानकार हैं
 हमारे आफिशर होते जो जता जाते अपना हि अधिकार  हैं
 हमे फिर नही मिलते हमारे मिलने वाले अधिकार है
 
 जब जान देने कि बारी आति  सबसे आगे आते हम हर बार हैं
 भारत माता को  विजय  दिलाते  हर बार हैं
               फिर भी तिरस्कार क्यो होता हमारा लागातार हैं
 हमे तो कुछ मिलता  आफिसर ले जाते सारे  पुर्शकार है
 
 सारी जवानी  रेगिसतान ओर बर्फ कि पहाडीयो  मे कट जाती है
 हमे हमारे  बच्चे ही  पह्चान्ने मे वर्सो लगा जाते   है
 डयुटि के चक्कर मे हम अपने संशार  को भुला देते हैं
 जरुरत के समय ये  सब हमे आखे दिखा देते हैं

 हमारी जो पहचान, सबसे बडे बलिदानी के रूप मे होती हैं
बाद मे ये पह्चान बस,एक गार्ड  के नए रूप मे होती हैं
हमारे हिस्से मे बस एक   गुरूप डि की ही नोकरी आती हैं
कयोकि -   हम तो जंगल छानते रह जाते  
नोकरी एअर फोर्स ओर नेवि वाले ले जाते हैं

 उप्पर बताई बाते जब  किसी फोजि के सामने आती हैं
  अपने काम ओर इनाम को सोच 2 कर  उसकि आंखे भर आती है
   पर अब हम कर भि क्या पाते दर्द लिए मन ही मन मुकरा जाते हैं
   किसी को बताते तो वो हमे फोजि मेंटल बता जाते हैं




जीवन एक कविता : JIVAN EK KAVITA : LIFE IS A POEM

 ये कविता मेरे दिल का एक छुपा हुआ गम हैं
सोचता हुं कितने ओर अभी पिने ये गम है

कब मे कविता लिखने लगा  पता ही नही चला हैं
हां बस कुछ घर से दुर रहने  मोका जो मिला है

 ना अब तक कोई कविता  मेरे जीवन मे आई है
 ना अब तक कोई कविता  मन मे घर कर पाई हैं

फिर भी ना जाने क्यो मन केे ये मेरे तराने बन गए हैं
फिर जाने क्यो ये मेरे लिखने के बहाँने बन गए हैं
 मेंने जो सपने संजोए थे वो अभी पुरे नही हो पाए है
पर जीवन की दोड मे हम बहुत आगे निकल आए हैं


 दिल मे छुपे जख्म नग्मे बन सामने जो ये आए है
अपने अलावा किसी को ना अपना गम बता पाऐ हैं
 जीवन मे सभी रिस्ते अपने  छुपे रंग  दिखाते आए हैं
इन रंगो को देख- मन ही मन सिसकते हम आए हैं.

 चाहकर भी ना हम किसी को गम  बता पाए हैं
ओर चाहा कर भी हम ना वो जख्म भुल पाए हैं
 इसी गलती पर अपने आप को  कोसते आए हैं
 पर इसी गम से अपना मनोबल उंचा करते आए है



देविंदेर ने इन गमो को समझ कर पी लिया रम हैं
दुनिया को देेेख कर कुछ नही अपना ये गम हैं 
कहने को तो  जाने कितनी लम्बी ये लाईन हैं
पर कम मे जो समझ आ जाऐ वो ही फाईन हैं

                JAI HIND