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जिंदगी एक पहेली

 जिंदगी एक पहेली है ना क़िसी की सगी ना सहेली है 

जितना किसी के साथ रहना चाहो,


ये पैदा कर देती रहने के हालात रहने को अकेले है

चारो ओर दिखाई देते जवानी के मेले है


पर फिर भी जीवन काटना पडता अकेले अकेले है

जिसे जितना चाहो, वो उतना ही धोखा देता है


रिश्ते नाते सब, मतलब तक दिखाई देते है

 ये ही रिश्कतें ही सबसे ज्यादा गम देते है


ये सब सामने रह कर, फैलाते मुहमाया का जाल है

जो इसमें फसे उनका होता बुरा हाल है


कोई घरवाली से तंग कोई बाहर वाली से है

कोई अपने कोई ना मिलने के कारण तंग है 


कोई घर वालो से कोई बाहर वालो से तंग है 

कोई संतान से तंग कोई संतान ना होने से तंग है


कोई माया से तंग कोई माया ना होने पे तंग है

कोई पढ़ाई करके तंग कोई ना कर पाने से तंग है


कोई जीने से तंग कोई ना जी पाने से तंग है

कोई अकेले पन से तंग कोई मेले से तंग


कोई खाना ना होने पे तंग

कोई खाना होने पे खा ना पाने पे तंग


कोई बाबा बनकर तंग, कोई बाबा से तंग

कुल मिला कर ये जीवन एक जंग

इसे लड़ने का सबका अपना अपना ढंग