कविता : Kon tumhe chahata ye mansha se pata lag jaata hain
कोन तुम्हे चाहाताये मन कि मंशा से पता लग जाता हैं
कोन तुम्हे चाहाता, ये कुछ दिनो मैं पता लग जाता है
कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैंकोन तुम्हे मिलने, बिंना मतलब घर आता हैं
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
कोन तुम्हे उसकी जरुरत के समय ही, सामने नजर आता हैं
...कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
सब जिते जी का बसेरा, साथ ना कुछ जाता हैं
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
क्योकि वो भी अपनी मंशा पुरी, करना चाहाता हैं.
... कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
बेटी का जन्म तो, बस बेटे कि चाह मे हो जाता हैं
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
घर मे जो आता जाता बेटी की तमन्नाओ को छोटा कर जाता हैं
....कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
भाई बहन सब बचपन मे प्यारे, जवानी आते 2 सब बदल जाता हैं
भाई बहन के प्यार, अपना मतलब आते ही जहर मे बदल जाता है
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता हैं
वो ही भाई, भाई से ,अपनी जान छुडा.ता नजर आता हैं
...कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं
छ्ला जाने के बाद भी दुनिया मे किसी को नही बता पाता हैं.
...कोन तुम्हे चाहाता, ये मन मंशा से ही पता लग जाता है
जब तक वो इस खेल मे काफी पिछे रहा जाता हैं
.कोन तुम्हे बिना मतलब, फोन करके आता हैं