ये कविता मेरे दिल का एक छुपा हुआ गम हैं
सोचता हुं कितने ओर अभी पिने ये गम हैकब मे कविता लिखने लगा पता ही नही चला हैं
हां बस कुछ घर से दुर रहने मोका जो मिला है
हां बस कुछ घर से दुर रहने मोका जो मिला है
ना अब तक कोई कविता मेरे जीवन मे आई है
ना अब तक कोई कविता मन मे घर कर पाई हैं
फिर भी ना जाने क्यो मन केे ये मेरे तराने बन गए हैं
फिर जाने क्यो ये मेरे लिखने के बहाँने बन गए हैं
मेंने जो सपने संजोए थे वो अभी पुरे नही हो पाए है
पर जीवन की दोड मे हम बहुत आगे निकल आए हैं
दिल मे छुपे जख्म नग्मे बन सामने जो ये आए है
अपने अलावा किसी को ना अपना गम बता पाऐ हैं
जीवन मे सभी रिस्ते अपने छुपे रंग दिखाते आए हैं
इन रंगो को देख- मन ही मन सिसकते हम आए हैं.
चाहकर भी ना हम किसी को गम बता पाए हैं
ओर चाहा कर भी हम ना वो जख्म भुल पाए हैं
इसी गलती पर अपने आप को कोसते आए हैं
पर इसी गम से अपना मनोबल उंचा करते आए है
देविंदेर ने इन गमो को समझ कर पी लिया रम हैं
दुनिया को देेेख कर कुछ नही अपना ये गम हैं
पर जीवन की दोड मे हम बहुत आगे निकल आए हैं
दिल मे छुपे जख्म नग्मे बन सामने जो ये आए है
अपने अलावा किसी को ना अपना गम बता पाऐ हैं
जीवन मे सभी रिस्ते अपने छुपे रंग दिखाते आए हैं
इन रंगो को देख- मन ही मन सिसकते हम आए हैं.
चाहकर भी ना हम किसी को गम बता पाए हैं
ओर चाहा कर भी हम ना वो जख्म भुल पाए हैं
इसी गलती पर अपने आप को कोसते आए हैं
पर इसी गम से अपना मनोबल उंचा करते आए है
देविंदेर ने इन गमो को समझ कर पी लिया रम हैं
दुनिया को देेेख कर कुछ नही अपना ये गम हैं
कहने को तो जाने कितनी लम्बी ये लाईन हैं
पर कम मे जो समझ आ जाऐ वो ही फाईन हैं
पर कम मे जो समझ आ जाऐ वो ही फाईन हैं
JAI HIND