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समय की मार

 

समय की मार

एक दिन अकेला मै बैठा था रात सुनसान मे
सोच रहा था कितना बदलाव आता रहता है इंसान मे

इतने मे समय आकर कहने लगा मूझे की
क्यो बैठा समय खराब कर रहा है ईस बियाबान मे
और कहने लगा की….
जितना समय तुम्हे दिया वो काफ़ी है
जों करना है कर लो,
ज़्यादा समय लेने का
नही कोई यहाँ उपाय हैं

कर लें जों करना,
नही तो समय ये बित जाना है

हाँ एक बात याद रखना
दिय समय मे ही जों करना है वो कर लेना
लेकिन जल्दी मे, पाप की गठरी ना भर लेना

क्योंकि कर्मो के फल भी यही भोगना है
मिले समय मे, माया और मोहमाया के झमेले मे

फस ना जाना, जीवन पथ के मेले मे
क्यो समय ख़राब कर रहा,बैठ अकेले मे

और फ़ीर भी मै नही हिला तो समय बोला —-

कर लें जितना कोई गुमान, ईस काया पर
कर लें जीतना कोई गुमान, अपनी माया पर
तन मेला मन चाहे तब कर लो साफ
पर जब, मन ही मेला तो कैसे हो,साफ

मन मेरे को साफ,
बस करें गुण गान राम नाम का
तो मिल जाए,स्वर्ग की राह
नही तो जीवन तेरा गुजरे कराहा -2

देख मेरा रुख, समय मुस्करा फ़ीर बोला

तू जों मेरी बाते सुन
मन ही मन मुस्करा
उसके पीछे तेरे इन रिस्तो की मोहमाया है
जों बना,इतना इतराया है

एक बात कहु ज्ञान की –
जीवन के रिश्ते, एक समय सीमा तक
साथ निभाते है
जब हो जीवन का कठिन समय,
तभी ये, रिश्ते मुँह मोड़ जाते है

लेकिन तब तक,ईस छोटे से जीवन का
एक बड़ा सा हिस्सा,हम बिता जाते है
और फ़ीर ईस गलती को नही पचा पाते है
इसी अफ़सोस मे, गलत राह पकड़ जते है