एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ। हिंदि कविता by देविंदेर गुज्जर। सैनिक जीवन । सैनिक जीवन ओर ये दुनियां


 FOJI HOON MAIN MERI GAATHA SUNAAATA HOON


 

एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

कोई कवि नही मैं अपने मन कि व्यथा सुनाता हूँ
 
अभी तक जवानी की दहलिज पर नही पहुच पाया हूँ
पर मे देश कि दहलिज पर जवान बन पहुच जाता हूँ
पवित्र ग्रंथ कि सपथ ले जब मैं सैनिक जीवन अपनाता हूँ
जो मुझे आदेश मिलेगा उसे पुरा करने मैं कस्म खाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
पुरा जीवन मैं उस कस्म पुरा करने मे लगे रह जाता हूँ
पुरा जीवन मैं घर ओर ड्युटी मे तालमेल नही बिठा पाता हूँ
कोई कैसे भी जिए जीवन पर मैं अपना सैनिक जीवन जीए जाता हूँ
कोई जरुरत पडे. तो मैं सुहाग रात छोड.पहले सैनिक धर्म निभाता हूँ
  एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

अपने ग्रह्थ जीवन मे सायद ही मैं सकुन पाता हूँ
पर देश सेवा के बिच मे  मैं इसे कभी नही लाता हूँ
मेरी जीवन गाथा मे मैं प्रितम प्यारी का बहुत रिणी हो जाता हूँ
इसके त्याग़, संतोश भाव के कारण ही मैं अपनी ड्युटी करता जात हूँ
...एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

जब कई -2 महिने बाद घर मैं जब आता हूँ
अपने बच्चो के लिये ही मैं अजनबी बन जाता हूँ
एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

कई बार जब मैं मोत को हरा कर आता हूँ
ओर कई बार जब मैं मोत को हरा नही पाता हूँ
ये महोल हर रोज जब मैं मेरे पास पाता हूँ
अपने ही दिल से पुछो कैसे ----
-मैं अपने अर्मानो से पहले देश को रख पाता हूँ
...एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
मैं देश के गोरव के लिये अपने आप को मिटा जाता हूँ
को मेरे काम पर सवाल उठाए, सबुत मांगे  ये मैं नही देख पाता हूँ
पर देख ये दोगलापन मेरे साथी अंदर ही अंदर जल-2 जाते हैं
पर फिर भी मैं अपने देश के लिये सब सहन करता जाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।
 
जब कभी गलती से मैं छुट्टी पर कोई गलती मे आ जाता हूँ
अपने चारो ओर बस मैं देश के कानून का फन्दा पाता हूँ
जब मुझे सहिद होने पर अपने घर पहुचाया जाता हूँ
 जनता ओर कानून का झुठा सैनिक प्रेम देख रो नही पाता हूँ
....एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

जनता ओर सरकार को बस इतना कहना मैं ये चाहाता हूँ
जिंदा रहने पर मैं कुछ इज्जत अपनी देखना चाहाता हूँ
..एक सैनिक हुं मैं,सैनिक जीवन गाथा सुनाता हूँ।

मोह माया का जाल क्या तोड पाएगे | Mohmaya kaa jaal | Hindi Kavita | Devinder Gujjar



 मोह माया का जाल क्या तोड पाएगे

जिस दिन हम  छोड. इस दुनिया को धर्म नगरी चले जाएगे
उस दिन छोड. सारे काम दूनिया वाले स्वर्ग धाम हमे ले जाऐगे
जिंदा रहते कोई विचार ना किया वो भी अच्छा हमे बता जाऐगे
जिदा रहते कोई विचार काम ना आया अब क्या काम आऐगे
 
कल्युग इतना बदला कि तीसरे दिन ही हमे भुल जाएगे
पहले कि तरह नही 13 दिन तक नही शोक मनाएगे
 
ये बात अलग कि बच्चे जो छोटे रह जाएगे
उन्हे कोन पालेगा बस जो ये अफ्शोश मनाएगे
 
उम्र हो जाए तो ये कब पिछा छोडे. ये गुहार लगाने लग जाएगे
कुछ ज्यादा कमाई हो तो सोचते कितने ओर  ये जी जाएगे
 
जीते जी हर रिस्ते लूट -2 कर बेशक खाते जाएगे
जब जी ना रहा तो झुटे आशु वो बहा कर दिखाएगे
 
सब को पता की एक दिन सब दुनिया छोड. जाएगे
पर अहंकार जो बसा अंदर नही वो छोड. पाएगे
 
भागदोड. भरी इस दुनियां मे ये एक पल ना रुक पाएगे
चाहे समय जीतना रहे सुख के समय ना प्रभु नाम जप पाएगे
 
भगवान के द्वार जाकर भी वो अपने ओर अर्मान जगाएगे
हे प्र्भु ! हमे ओर दे कुछ फिर तेरे द्वार स्वमं हम आएगे
 
एक बार जो दोड.ने लगे फिर ना ये रुक पाएगे
एक बार भी ये ना संतोश जो मिला उस पर जताएगे
 
धोखे फ्रेब से जो पुरी उम्र कमाया उसे यही पर छोड. जाएगे
जो कमाई लेगे वो कुछ दिनो मे ही याद करना छोड. जाएगे
 
कोरोना के काल मे क्या सब इसी के डर से मरते जाएगे
क्या कोई कैसे भी मरा हो डाक्टर उसे कोरोना ही बताएगे
 
क्या हम कोरोना के जाल से अपनी चाल भुल जाएगे
क्या हम अपनो को यु ही बुरे हाल मे छोड.ते जाएगे